चंडीगढ़ नगर निगम चुनावों में आप पार्टी ने भाजपा को पछाड़ा, जीती 14 सीटें
चंडीगढ़ नगर निगम चुनावों में आप पार्टी ने भाजपा को पछाड़ा, जीती 14 सीटें
मेयर निर्वाचित होने के लिए चाहिए 19 पार्षद, आप-कांग्रेस में तालमेल संभव - हेमंत
चंडीगढ़ - चंडीगढ़ नगर निगम के छठे आम चुनाव हेतु बीती 24 दिसंबर को करवाए गए मतदान, जिसमें 60 प्रतिशत से अधिक वोटरों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था, हेतु मतगणना आज 27 दिसम्बर को करवाई गयी जिसमें कुल 35 वार्डों में से 14 वार्डों में आप पार्टी के उम्मीदवार विजयी हुए जबकि 12 में भाजपा के प्रत्याशी जीते. 8 वार्डों में कांग्रेस जबकि 1 में शिरोमणि अकाली दल का उम्मीदवार जीता.
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के एडवोकेट हेमंत कुमार ने बताया कि बेशक सीटों के हिसाब से आप पार्टी सबसे आगे रही, परन्तु जहाँ तक वोट प्रतिशत का विषय है, तो उसमें कांग्रेस ने बाजी मारी जिसका मत प्रतिशत 29 .79 % बनता है, भाजपा 29 .30 % के साथ दूसरे नंबर जबकि आप पार्टी 27 .08 % के साथ तीसरे स्थान पर रही.
बहरहाल, चूँकि आगामी जनवरी, 2022 के आरम्भ में ही चंडीगढ़ नगर निगम के मेयर , सीनियर डिप्टी मेयर और डिप्टी मेयर का चुनाव करवाया जाएगा जो नव निर्वाचित 35 पार्षदों द्वारा एवं उनमें से ही किया जाएगा जिसके लिए बहुमत की संख्या 19 हैं क्योंकि इन चुनावों में चंडीगढ़ की स्थानीय लोकसभा सांसद किरण खेर, जो भाजपा से हैं, उन्हें भी वोटिंग का अधिकार है. अत: भाजपा की कुल वोटें 12 जमा 1 अर्थात 13 बन जाती है. अगर अकाली दल का एक पार्षद भी साथ मिल जाए, तो यह संख्या 15 होती है. दूसरी ओर अगर आप पार्टी के 14 ओर कांग्रेस के 8 नव-निर्वाचित पार्षदों के मध्य आपसी तालमेल हो जाता है, तो यह संख्या 22 हो जाती है. इस प्रकार मेयर, सीनियर डिप्टी मेयर और डिप्टी मेयर पर आप ओर कांग्रेस पार्टी के पार्षद आसानी से निर्वाचित हो सकते हैं. हालांकि उक्त चुनावों के दौरान क्रॉस वोटिंग से भी इंकार नहीं किया जा सकता.
हेमंत ने बताया कि चंडीगढ़ नगर निगम में चंडीगढ़ प्रशासक द्वारा 9 पार्षद भी मनोनीत किये जाते हैं परन्तु उनका वोटिंग अधिकार अगस्त, 2017 में पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने असंवैधानिक घोषित कर समाप्त कर दिया था. इसके विरूद्ध दायर अपील सुप्रीम कोर्ट में लंबित है हालांकि हाई कोर्ट के निर्णय पर कोई स्टे नहीं दिया गया था.
उन्होंने यह भी बताया कि नगर निगम चंडीगढ़ के सभी 35 वार्डों से नव निर्वाचित पार्षद (कौंसलर) दल-बदल करने हेतु पूर्णतया स्वतंत्र है क्योंकि चंडीगढ़ पर लागू पंजाब नगर निगम कानून (चंडीगढ़ में विस्तार ) अधिनियम, 1994 , जैसा कि आज तक संशोधित है, में निर्वाचित पार्षदों द्वारा दल-बदल विरोधी कोई प्रावधान उपरोक्त 1994 कानून में नहीं है. इस प्रकार हर पार्टी से निर्वाचित पार्षद बे रोक-टोक विपक्षी दल को समर्थन दे सकता है या विपक्षी पार्टी में जा सकता है. इससे उसकी सदस्यता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. उपरोक्त 1994 कानून की धारा 13 , जो पार्षदों की अयोग्यता से संबंधित है, में इस बारे में कोई उल्लेख नहीं है.
हेमंत ने बताया कि जिस प्रकार इसी वर्ष पड़ोसी हिमाचल प्रदेश की जयराम ठाकुर के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार द्वारा वहाँ की विधानसभा द्वारा हिमाचल नगर निगम कानून में संशोधन कर निकाय चुनाव पार्टी चुनाव चिन्हों पर लड़ने एवं स्थानीय नगर निकायों में निर्वाचित सदस्यों (पार्षदों) को पाला-खेमा बदलने से रोकने हेतू दल-बदल विरोधी कानूनी लागू करने संबंधी कानूनी प्रावधान किए गए हैं, वैसा ही कानूनी संशोधन चंडीगढ़ नगर निगम पर लागू कानून में किया जाना चाहिए.
हालांकि करीब चार वर्ष पूर्व फरवरी, 2018 में चंडीगढ़ के तत्कालीन गृह एवं स्थानीय स्वशासन सचिव अनुराग अग्रवाल, आईएएस द्वारा चंडीगढ़ नगर निगम कानून में निर्वाचित पार्षदों द्वारा दल-बदल विरोधी प्रावधान सहित कई संशोधन करने सम्बन्धी एक ड्राफ्ट बिल चंडीगढ़ नगर निगम की वेबसाइट पर अपलोड कर सार्वजनिक किया गया था परन्तु दुर्भाग्यवश वह सिरे नहीं चढ़ पाया. उक्त ड्राफ्ट बिल में चंडीगढ़ नगर निगम कानून, 1994 की धारा 13 में संशोधन और कानून में एक नयी चौथी अनुसूची शामिल करना प्रस्तावित था जो दल-बदल विरोधी प्रावधानों से सम्बंधित थी.
हेमंत ने कानूनी जानकारी देते हुए बताया कि भारत के संविधान की दसवीं अनुसूची में जो दल बदल विरोधी/रोकथाम कानून हैं, वह केवल संसद और राज्य विधानमंडलों पर लागू होता है, शहरी स्थानीय निकाय (म्युनिसिपल ) संस्थानों जैसे नगर निगमों/परिषदों/ पालिकाओं पर नहीं इसलिए उक्त नगर निकाय के विपक्षी पार्षद कभी भी औपचारिक या अनौपचारिक रूप से मेयर/अध्यक्ष में खेमों/पार्टियों में शामिल हो सकते है हालांकि अगर केंद्र सरकार चाहती तो बीते चार वर्षो में संसद सत्र दौरान चंडीगढ़ पर लागू नगर निगम कानून में संशोधन करवाकर पार्षदों द्वारा दल-बदल करने पर अंकुश लगा सकती थी जैसे हिमाचल प्रदेश की भाजपा सरकार ने किया है. कर्नाटक में भी वर्ष 1987 में स्थानीय निकायों संस्थानों में निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा दल-बदल रोकथाम के लिए कानून बना लागू किया